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थप्पड़ थप्पड़ की बात है

chalte chalte
chalte chalte
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तुम मारो तो थप्पड़
मैं मारूं तो प्यार
एक चाटे की गूँज से
गूँज गया संसद
क्योंकि चांटा पड़ा था
मंत्री के गाल पर
मगर जब एक औरत की
मान पर हाथ उठा
संसद क्यों रहा मौन
क्यों नहीं मची हलचल
सियासत की गलियारों में?
क्यों नहीं बंद रहा
एक गली एक नुक्कड़ एक चौराहा भी ?
वाह री प्रजातंत्र ,वाह री सभ्यता
वाह री संस्कृति वाह री एकता
इससे तो अच्छी जंगल है
एक जुर्म की एक सज़ा
राजा करे या करे प्रजा
यहाँ जुर्म करने वाले
पूजे जाते हैं
जुर्म सहने वाले
पिटते जाते हैं
अगर ऐसा ही होता रहा तो
प्रजा ही इस तंत्र को तोड़ेगी
समय के हर रुख को मोड़ेगी
सितमगर के हर सितम का हिसाब जोड़ेगी
हर थप्पड़ के बदले
दस दस मंत्रियों के सर फोड़ेगी .

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