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चेहरे पे चेहरा

chalte chalte
chalte chalte
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एक चेहरा लगाया
मैंने अपने चेहरे पर
चल पड़ा स्कूल की तरफ
यही चेहरा सब जानते हैं
छात्र, शिक्षक, सहकर्मी
मुझे मानते हैं, पहचानते हैं
एक शिक्षक का सौम्य चेहरा
ज्ञानवान चेहरा
मान-सम्मान का चेहरा…..
घर लौटा तो
लगाया एक और चेहरा
एक पति का चेहरा,
एक पिता का चेहरा,
कभी प्यारा तो कभी कठोर चेहरा….
शाम हुई
बाज़ार निकले
लगाया एक नया चेहरा
दोस्तों के साथ एक और चेहरा
भीड़ में एक अलग चेहरा,
तन्हाई में अलग चेहरा…….
चेहरों की इस भीड़ में
शायद कहीं गुम गया
मेरा अपना चेहरा………
मैं,
किसीका शिक्षक,
किसी का पति, किसी का पिता
किसी का भाई,किसी का बेटा
मगर
मैं खुद का क्या?
ना जाने कब खो गया
मेरा अपना चेहरा……
अब तो
चेहरे पे चेहरा लगाये
घूमता हूँ
आईने के सामने खड़ा होकर
पूछता हूँ-
आईना, तू ही बता
क्या है मेरा असली चेहरा?
आईना हँस देता है
विषदंत से डँस लेता है
जहर जब गुमनामी का
चढ़ने लगता है नसों में
लगा लेता हूँ मैं
डरकर
फिर एक नया चेहरा…….
अपनी ही वहशत से
अब होने लगी है दहशत
किसी दिन सचमुच अगर
देख लूं अपना असली चेहरा
क्या पता खुद से ही
करने लगूँ बेहिसाब नफरत……
इतने चेहरों की ज़िन्दगी जीते-जीते
थक चुका हूँ,
ऊब चुका हूँ
इस भवसागर में मैं
डूब चुका हूँ.
ना जाने किस घड़ी की लानत थी
जब पहली बार
लगाया था मैंने
अपने चेहरे पे एक नया चेहरा.

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